लेखनी कविता -दादा-पोती - बालस्वरूप राही
दादा-पोती / बालस्वरूप राही
दादाजी की पोती जी से बड़े मजे की छनती है।
पोती लुढ़क –लुढ़क कर चलती
लोट-पोट हो जाती है।
दादाजी भी चलते डगमग
ऐनक जब खो जाती है।
इसीलिए शायद दोनों में कुछ ज्यादा ही बनती है।
दादाजी हो चले पोपले
दलिया, खिचड़ी खाते हैं
पोतीजी के दाँत दूध के
चीजे नरम चबाते हैं।
हलवा- पूरी खा कर दोनों की ही दावत मनती है।
अभी हाल पोती का मुंडन
धूम-धाम से किया गया।
दादाजी के सिर पर मुश्किल
से उगता है बाल नया ।
दादाजी हैं बड़े सयाने, पोती भी गुणवंती है।